दीप सा दिन रात मैं | Deep sa din raat main | Poem Hindi mein
दीप सा दिन रात मैं
( Deep sa din raat main )
दीप सा दिन रात मैं, जलता रहा जलता रहा.
बस अंधेरों को यही, खलता रहा खलता रहा.
चैन से बिस्तर में आकर, वो कभी सोता नहीं
दूसरों को जो सदा, छलता रहा छलता रहा.
वक्त पर जो वक्त की, करता नहीं कोई कदर
अंत में वो हाथ को, मलता रहा मलता रहा.
बैर बन जाएगा वो, बस देखते ही देखते
रोष जो दिल में यदि,पलता रहा पलता रहा.
उससे मंजिल कोई भी, छीन सकता नहीं
जो मुसाफिर रात दिन, चलता रहा चलता रहा.
साथ में मां-बाप की, “चंचल” दुआएँ जो रही
हादसा हो कोई भी, टलता रहा टलता रहा.