Deepawali ki poem

दीपावली की जगमग | Deepawali ki Poem

दीपावली की जगमग

( Deepawali ki jagmag )

 

सजी दीपमाला उजाला है घर में
झालरों की रोशनी चमकती नगर में।
जगमग जहां आज लगता है सारा
बहारों में खुशबू दिखे हर पहर में।।

 

चमकते हैं जैसे गगन में सितारे
कारी कारी रातें टिमटिमाते तारे।
वही रूप धरती का शोभित हुआ
धारा पर जब दीपक करे उजियारे।।

 

दुकानों में बहुरंगी सजी है मिठाई
लड्डू और पेड़ा गज़ी रस मलाई ।
लगी भीड़ ऐसे मानो बटता खजाना
मन चाहे जितना ले लो तुम भाई।।

 

मगन होकर बच्चे पटाखा को फोड़े
जलाकर राकेट बाण गगन में वो छोड़ें।
चकरी नचाए और फुलझड़ी जलाए
जीवन में खुशियों को अपने साथ जोड़ें।।

 

घर घर में हो रही लक्ष्मी की स्वागत
पूजा और पाठ में सब रात भर जागत।
तन मन से कर रहे हैं आज सब तैयारी
मानो परम सिद्धि की रात यह लागत।।

 

कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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