देखो मैं गांव था | Dekho main Gaon tha
“देखो मैं गाँव था” – सुंदर और जीवंत
पुस्तक समीक्षा
Book review by: Dr. Sunita Tripathi
बहुत ही सुंदर और जीवंत…
पढ़ना शुरू किया तो रुकने का मन ही नहीं हो रहा था । भक्ति प्रेम जीवन संघर्ष बहुत सारे रंग एक साथ देखने को मिले । जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।
हर एक कविता अपनी एक मुकम्मल कहानी कहती हुई प्रतीत हुई ।
कहीं ना कहीं हम सभी के जीवन के साथ जुड़ी हुई सी लगी ।
‘सोने सा तुम हर दम तपना’
बहुत ही सुंदर…..
सच पूछो तो यह कहना कि किस कविता ने ज्यादा प्रभावित किया या कौन सी कविता ज्यादा सुंदर है मेरे लिए थोड़ा मुश्किल है ।
“दर्पण’ सच को उजागर करता हुआ आत्मा का आत्मा से परिचय कराता हुआ लगा ।
‘रिश्ते ‘... पढ़कर….. मन बहुत ही भावुक हो उठा । मां के साथ रहना चाहती हूं पर जिम्मेदारियों के कारण ऐसा नहीं हो पाता है, तब महसूस होता है कि काश हम बड़े ही ना होते । मन को छू गई गई आपकी यह कविता ।
“गांधी-चंपारण सत्याग्रह’…. आज का सच उजागर करता है ।क्या सच में हम गांधी को भूलते जा रहे हैं । सोचने पर विवश करती है कविता।
‘स्वेटर’…. मन को भीगो गया।
‘प्रयागराज का सफर’ बेहद उम्दा… आपकी कविता ने कॉलेज का पूरा संघर्ष और सफर सजीव कर दिया । ऐसा लगता है कि कवि के साथ पाठक भी उनके कॉलेज का सफर तय कर रहे है।
प्रवासी…
विदेश में रहने वाले हर प्रवासी भारतीय की व्यथा, “रोटी का मसला ” न होता तो अपना देश भला कौन त्यागता …..पर ह्रदय में भारत बसता है।
नवोदय का सफर
सनातन शाश्वत है
एक से बढ़कर एक उम्दा और बेहतरीन कविता।
कविता ‘वर दो’ बहुत ही पसंद आई । कुंती के विरह का सफर मन को झकझोर देता है । कृष्ण से मिलने की इच्छा प्रबल हो उठी है।
“नंदिनी”
एक नन्हे से बालक और उसकी बेजुबान मित्र के गहरे और निस्वार्थ प्रेम को दर्शाता हुआ लगा । हमारे घर पर भी पिताजी हमेशा से गाय रखते थे ऐसा लगा मैं अपने बचपन में लौट गई । आपको बहुत बहुत साधु वचन ।
काव्य संग्रह रोचकता और रस से भरा हुआ ।
आपकी लेखनी सशक्त और प्रखर है। मैंने प्रयास किया है …. परंतु वास्तव में असंभव सा है कलम बद्ध करना ….. बहुत ही खूबसूरत काव्य संग्रह।
भावनाएं हिंदी में ही आकार लेती है इस बात को भी सच साबित करता हुआ।
काव्य संग्रह का शीर्षक “देखो मैं गांव था” सहज ही उत्सुक करता है पृष्ठ पलटने को ।
पुस्तक की सफलता के लिए बधाई । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आप एक मझे हुए कवि और लेखक हैं । आपकी प्रभावशाली लेखनी को प्रणाम है।
बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई शांति प्रकाश जी
Dr. Sunita Tripathi
“देखो मैं गाँव था” – खूबसूरत यादों का झरोखा
Book review by: Brijesh Mishra
आपके द्वारा रचित ‘देखो मैं गांव था’ हमें एक बेहद खूबसूरत यादों के झरोखे के सामने खड़ा कर देती है। बड़ी ही खूबसूरती के साथ जहां धीरे-धीरे गांव से जुदा होते हमारे बचपन का चित्रण है तो वहीं रिश्तों की मिठास का दर्शन भी हो जाता है।
यह सबकुछ काफी संवेदनशील है। अपने जीवन में आपने रिश्तों का गहनता से अध्ययन किया है जो इस काव्य संग्रह में स्पष्टता से दिखाई देती है।
‘हे कविता तुमसे क्या मांगू’, पोस्टकार्ड, देखो मैं गांव था, एक पिता ढूंढती है आदि दिल को छू लेती है। नंदिनी में एक गाय और उसके बछड़े के साथ प्रेम को दर्शाकर आपने भारतीय संस्कृति में गौ-माता के महत्व को बहुत सादगी के साथ उजागर किया है, जिसने बेहद खूबसूरत कविता का रूप ले लिया है।
गांव से निकल कर शहर में बस जाने के बीच के अन्तराल में आपने रिश्तों और गांव की कीमती यादों के खोने की जो वेदना को व्यक्त की है वह सचमुच हृदयविदारक है। इसमें लिखी एक-एक कविता दिल को सूकून देती है और अपनी मिट्टी से जोड़ती है। इसकी सरलता और भवुकता इसकी पहचान है। आशा करता हूं आगे भी आपकी कविताएं पढ़ने को मिलती रहेंगी।
आभार
Brijesh Mishra
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