Dhai akshar

ढाई अक्षर | Dhai akshar

ढाई अक्षर

( Dhai akshar )

 

रातभर फिर सोचकर घबराये हम।
ढाई अक्षर भी नहीं पढ़ पाये हम।।

 

मेरी आंखों में तुम्हारे आंसू थे,
चाह करके भी नहीं रो पाये हम।।

 

एक पग भी तुम न आगे आ सके,
सारे बंधन तोड़कर के आये हम।।

 

तमस तेरे मन से कब जायेगा भी,
दीप कितने और भी जलाये हम।।

 

मन का दर्पण किसलय जैसा होता है,
प्रस्तर खण्डों से बचाकर लाये हम।।

 

मेरे अन्तर्पीर को समझोगे कब,
शेष कितनी बार ये दोहराये हम।।

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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

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दीवार खड़ी हो गयी | Ghazal

 

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