Dhumil Hota Aakash

धूमिल होता आकाश

( Dhumil hota aakash ) 

 

रेत के टीले पर
बनाया था घर हमने
दूर की आंधी ने
नींव ही खोखली कर डाली

उड़ते रहे छप्पर
बांस खड़खड़ाते रहे
गरीबी की दीवार चादर न बन सकी
हवा के बहाव मे चल दिए वे भी
जिनके लिए कभी हम
बहुत कुछ थे…सब कुछ थे

जाते जाते कह गए अदब से
माफ करिएगा बाबूजी
आपके दिए संस्कार हमे
कहीं कमजोर नही होने देंगे
हम इतनी मजबूत दीवार बनाएंगे
कि कोई हमे डिगा नहीं पाएगा

बस ! दर्द रहेगा तो इतना ही की
हम आपके लिए कुछ कर नही पाए
आपकी मेहनत आपका त्याग
रहेगा हर पल आंखों के सामने
एक पल के लिए भी हम आपको
भुला नही पाएंगे

वैसे,आते रहेंगे यदा कदा
आपसे अलग हमारी पहचान ही क्या है

बाबूजी ,बच्चों के भविष्य का सवाल है
हो सके तो हमे माफ कर दीजिएगा
और ….वो चले गए
अपनी एक नई उड़ान पर
हम देखते ही रह गए

दूर होते पद चिन्ह
धूल से धूमिल होता आकाश
शाम की ढलान
रात का अंदेशा
हम देखते रहे…..
उसने ,धीरे से हांथ कंधे पर रखा
और मुंह लटकाए ही बोली
आपकी आंखों मे शायद
तिनका चला गया है
लो फूंक मार दूं
देखा ,उनकी आंखों का भी वही हाल था
पर
कह कुछ न सका
वो ,आंचल को मुंह मे रखकर
गर्म कर रही थी…

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

साहित्यकार | Sahityakar

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here