दीवाली का राम राम
दीवाली का राम राम
दीवाली के पावन पर्व पर मेरा सबको राम राम,
टूटे रिश्ते भी जोड़ देती है अदृश्य इसका काम।
नही लगता ख़र्चा इसमे कुछ भी न लगता दाम,
दूरियां पल-भर में मिटाती बस करलो प्रणाम।।
गले-मिलों वफादार-बनों समाज में बढ़ेगी शान,
अमावसी अंधेरा दूर करलो खोलों ऑंख कान।
हॅंसता खेलता घर लगता है तभी मन्दिर समान,
खील बताशे धरे रहेंगे हो चाहें महंगे पकवान।।
आओ मिलकर हम-सब बांटे ऐसे पर्व पर ज्ञान,
विश्वास नही तो करके देख लो बढ़ेगा सम्मान।
खुशियों का संदेश देती मुख पर लाती मुस्कान,
मायुसी न लाओ घर में छूओ गगंन आसमान।।
पाॅंच दिनों यह पावन पर्व करता है जग प्रकाश,
करों सफ़ाई दिल की तुम देखना फिर विकास।
हॅंसते-हॅंसते मनाओ दीवाली आएंगी यारों रास,
सदियों पुरानी परम्परा को निभाएं एक साथ।।
दिवाली की साॅंझ-सजाओं भरों मन में मिठास,
साल में एक-बार जो आये त्यौहार है ये ख़ास।
मन से मन को मिलाओ मत रखो कोई खटास,
कल्पित हमारी रचना का सभी करों विश्वास।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )