दो दिन की जिंदगानी | Do Din ki Zindagani
दो दिन की जिंदगानी
( Do din ki zindagani )
दो दिन की जिंदगानी प्यारे झूठा यह संसार है।
तन बदन है माटी का प्यारे सांसे सभी उधार है।
चंद सांसों का खेल सारा पंछी को उड़ जाना है।
ये दुनिया है आनी जानी आगे और ठिकाना है।
माटी के पुतले को फिर माटी में मिल जाना है।
रंगमंच है सारी दुनिया बस किरदार निभाता है।
ढाई आखर बोल प्रेम के प्रीत की डोर है पावन।
प्यार का सागर उमड़ता प्रेम का बरसता सावन।
दुनिया याद उसे करती जो जनसेवा को जीता है।
औरों की खुशियों में खुश हरदम गम को पीता है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )