Tamannayen

तमन्नाएं

( Tamannayen ) 

निकला था
आकाश को छू लेने की ख्वाहिश मे
तमन्ना थी सितारों के साथ
बादलों संग खेलूं
चांद की धरती पर सूरज से बाते करूं
पर,
अचानक ही धरती डोल गई,और मैं गिरा गहरी खाई मे
बहुत देर बाद समझा की मैं हनुमान नही था

ऐसे ही ठंड की कंपकंपाती रातों मे भी
रजाई से कभी सिर ,कभी पैर बाहर ही रह जाते थे
सीधे की जिद्द मे रात जागकर गुजर जाती थी
पैर मोड़ लेता तो ठीक था

हौसले ,जुनून ,चाहत से ही
कामयाबी नहीं मिलती
सामर्थ्य और प्रतिद्वंदिता योग्य भी
होना जरूरी होता है

सहारे और नसीब की उम्मीद मे
मंजिल नही मिलती
रात को भयावहता और दूरी का सफर
तय करने से पहले
दिल को धड़कनों को भी
टटोल लेना चाहिए

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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