दोस्त या दुश्मन | Dost ya Dushman
दोस्त या दुश्मन
( Dost ya dushman )
लबों पे है तबस्सुम , दिल में नफ़रत बीज बोते है
अदब ऐसा अग़र, ना वो कभी भी दोस्त होते हैं ॥
मिलाते हाथ यूँ ,लगती तबीयत जोशजन उनकी
घुमाते पीठ पीछे साजिशे – मोती पिरोते हैं ॥
फ़रेबी रग में इनके इस क़दर ख़ाता हिलोरे है
शराफ़त राह से ये आदतन अंजान होते हैं ॥
करें शीरी बयाँ ऐसी ,यकीं आँखें नहीं करती
मुहब्बत की शक्ल में रंजिशें खंज़र चुभोते हैं ॥
अदावत रास्त-बाज़ी से निभे होती सदा बेहतर
वगरना बेवफ़ाई से सभी विश्वास खोते हैं।।
है दुश्मन-दोस्त या फिर दोस्त-दुश्मन जानना मुश्किल
बहुत हैं, दोमुंहे रुख़ से छले जाने पे रोते है।।
हमें अल्ला बचाये ऐसे नकली दोस्ताना से
बचाने नाम पर जो आपकी कश्ती डुबोते हैं ॥
सुमन सिंह ‘याशी’
वास्को डा गामा,गोवा