दुनिया-ए-फ़ानी

दुनिया-ए-फ़ानी | Duniya-e-Fani

दुनिया-ए-फ़ानी

( Duniya-e-Fani )

अपने लिए ही वक्त कम पड़ने लगा है.
दुनिया-ए-फानी में मान रमने लगा है.
न जाने क्या पाने के ज़िद है इस दिल को.
फुज़ूल ख़ुदा की नेअमत लगने लगा है.

हर वक्त एक अजीब सा शोर बरपा है.
कुछ मिलकर खो जाने का धड़का है.
नाकामयाबी के डर से दिल लरजने लगा है.
पास खड़ी है मगर दूर मंजिल दिखने लगा है.

इंसानियत का रिश्ता बेईमानी सा हो गया.
मज़हब का झंडा आसमानी सा हो गया.
अब हर रिश्तों में मजहब बोलते लगा है.
लोगों के जज़्बातों पर बर्फ जमने लगा है।

Aash Hamd

आश हम्द

पटना ( बिहार )

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