एक ही थाली में मस्त हैं

( Ek hi thaali mein mast hai ) 

 

करते जो शहर भर में दूनाली से गश्त हैं।
हम हैं कि उनकी आम ख्याली से पस्त हैं।।

मवाली इन्हें समझे उन्हें समझे थे मसीहा,
सच में कि दोनों एक ही थाली में मस्त हैं।

आका हमारे जाम तोड़ते हैं आए- दिन,
हम हैं कि महज़ चाय की प्याली में मस्त हैं।

ऋण चढ़ रहा है सर पे हमारी प्रगति के नाम,
हम हैं कि वाहवाही या ताली में मस्त हैं।

तुम किसके आगे बीन बजाते हो ‘सोनकर’,
सब लोग तो अपनी ही जुगाली में मस्त हैं।।

 

डॉ के.एल सोनकर ‘सौमित्र’
जिला महासचिव जौनपुर यूनिट ‘प्रलेस’
खुज्जी,कर्रा कॉलेज चंदवक,जौनपुर (यूपी)

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