भारत में खाद्य सुरक्षा : दशा, दिशा और परिदृश्य | Essay in Hindi
निबंध : भारत में खाद्य सुरक्षा : दशा, दिशा और परिदृश्य
( Food Security in India: Condition, Direction and Scenario : Essay in Hindi )
प्रस्तावना ( Preface ) :-
आज हमारे देश में अन्न भंडार लगातार बढ़ती आबादी को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने में समर्थ है। किसी अकस्मिक घटना से निपटने के लिए अनाज का सुरक्षित भंडार मौजूद है।
कम कीमत पर आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों को अनाज उपलब्ध कराने की एक मजबूत प्रणाली भी देश में काम कर रही है।
भारत में इन सारी चुनौतियों के बावजूद खाद्य सुरक्षा का भविष्य उज्जवल और सुरक्षित दिखाई देता है। अकाल और भुखमरी को करारी शिकस्त देकर भारत खाद्य सुरक्षा हासिल कर लिया है।
आज हमारे देश में अन्य भंडारों में लगातार बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने की सामर्थ्य है।
आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध करवाने सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाओं के माध्यम से विशेष रूप से बच्चे और महिलाओं के लिए आहार और पोषण की व्यवस्था भी की गई है।
देश की 130 अरब आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि अनुसंधान एवं विकास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसने फसल, बागवानी, पशु, पक्षी, उत्पादों की कुल उत्पादन और उत्पादकता में क्रांतिकारी वृद्धि लाई है।
भारत में पोषण सुरक्षा के नजरिए से उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। लेकिन आज भी भारत में कुपोषित लोगों की संख्या काफी अधिक है।
अभी हाल में ही जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत का स्थान 116 देशों में 101 है। जबकि भारत से बेहतर स्थिति में भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान है। भारत में खाद्य सुरक्षा के बावजूद भुखमरी की समस्या वाकई में चिंता का विषय है।
आखिर समस्या कहां है किस लिए भारत में भुखमरी की समस्या पाई जा रही है? इस पर गहन चिंतन और विचार विमर्श करने की आवश्यकता है।
भारत मे खाद्य सुरक्षा ( Food Security in India in Hindi ) :-
खाद्य सुरक्षा में क्रांति आजादी के बाद 1960 के दशक में भारत में हरित क्रांति का उदय हुआ। इसी के बाद भारत अन्य उत्पादकता के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना। कृषि और संबंधित उद्यमों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग से उत्पादन को कई गुना तक बढ़ाना संभव हो सका।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में इस पर एक और ठोस कदम उठाया गया और भारत में अनाज उत्पादन बढ़कर 25.22 करोड टन से भी अधिक हो गया है।
हाल के वर्षों में भारत में सूखे जैसी दशाएं तथा प्राकृतिक आपदाओं की विपदा झेलनी पड़ी। लेकिन खाद्यान्न पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।
भारत में कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सरकार के कुछ योजनाएं महत्वपूर्ण रही हैं जिसमें हाल की योजनाओं में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार और परंपरागत कृषि विकास योजना प्रमुख रूप से शामिल है।
भारत जैसे विशाल और आर्थिक विषमता वाले देश में दूरदराज के दुर्गम इलाकों तक और समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक अनाज की भौतिक और आर्थिक पहुंच सुनिश्चित करना वाकई में एक कठिन चुनौती है।
परंतु अनुकूल नीतियों और योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से इनको बखूबी अंजाम भी दिया जा रहा है। 1960 के दशक से प्रारंभ सार्वजनिक वितरण प्रणाली जिसे PDS के नाम से भी जाना जाता है, समाज के सभी वर्गों तक रियायती कीमतों पर अनाज को उपलब्ध करवाता है।
बच्चों को स्कूल जाने की आदत को बढ़ाने तथा पोषण स्तर को सुधारने के उद्देश्य से 1995 में 2400 ब्लॉकों में मिड डे मील स्कीम शुरू की गई। आज मिड डे मील स्कीम को देश के सभी प्राथमिक स्कूलों में लागू कर दिया गया है।
चुनौतियां ( Challenges ) :-
देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को लंबे समय तक सतत रूप से बनाए रखना एक कठिन चुनौती है। क्योंकि लगातार बढ़ती आबादी और बढ़ते शहरीकरण की वजह से भोजन की मांग और विविधता में परिवर्तन आ रहा है।
यदि भावी परिदृश्य 2050 के नजरिए से देखा जाए तो भारत की आबादी 2050 तक 1.65 अरब तक पहुंच सकती है। देश के 50% आबादी तब तक शहरों में बस जाएगी।
ऐसे में कृषि के आधार को चोट पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। कई सारे शोध से पता चला है कि यदि सकल घरेलू उत्पाद में 7% की वृद्धि दर्ज की जाती है तब 2050 तक अनाज की मांग 50% तक बढ़ जाएगी।
फलों, सब्जियों और पशु उत्पादों में 300% तक की वृद्धि संभव है ऐसे में खाद्यान्न उत्पादकता जो वर्तमान समय में 25000 किलो कैलोरी प्रति हेक्टेयर है से बढ़ाकर 46000 किलो कैलोरी प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन के स्तर तक ले जाना होगा।
अवसर और संभावनाएं ( Opportunities and prospects ) :-
खाद्य सुरक्षा पर मंडराते खतरे को बांटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई योजनाएं बनाई गई हैं, जो खाद्य सुरक्षा को सतत बनाए रखने में सहायक होंगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर को विकसित किया जा रहा है। इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा।
कृषि अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से प्रमुख फसलों की जलवायु अनुकूल किस्में विकसित की जा रही हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़, गर्मी, सर्दी को सहने की क्षमता मौजूद हो। इस प्रकार जलवायु अनुकूल कृषि विधियों का विकास किया जा रहा है।
सिंचाई के पानी की कुशलता बढ़ाने के लिए टपक सिंचाई, फवारा सिंचाई जैसी सूक्ष्म व कुशल तकनीक विकसित की जा रही है जिसका किसानों के खेतों तक प्रसार किया जा रहा है।
फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग की बेहद क्षमता वान तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इससे कृषि क्षेत्र में चमत्कारी बदलाव लाए जा सकते हैं।
परंतु इसके उपयोग के लिए सरकारी नीति और संस्कृत की आवश्यकता है और यह भी न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण लंबित है। परंतु भविष्य में इस तकनीक का इस्तेमाल खाद्य सुरक्षा को सतत बनाए रखने में बेहद अहम होगा।