ग़म यार हजार ज़ीस्त में है | Gam ghazal
ग़म यार हजार ज़ीस्त में है
( Gam yaar hajaar zeest mein hai )
ग़म यार हजार जीस्त में है
इक पल न क़रार जीस्त में है
रूठी है यहां प्यार की खुशबू
कोई न बहार जीस्त में है
कटती जीस्त जा रही है तन्हा
कोई नहीं यार जीस्त में है
देखा चांद सा वो चेहरा जब से
उसका ही ख़ुमार जीस्त में है
हासिल न हुआ प्यार कभी भी
मिलती रही हार जीस्त में है
फ़रहीन भरा कहां है जीवन
ग़म ही बेशुमार जीस्त में है
उससे मिला दे सदा आज़म को
जिससे ख़ुदा प्यार जीस्त में है