गंगा मइया | Ganga Maiya
गंगा मइया
( Ganga maiya )
गंगा मइया कै निर्मल लहरिया,
नहाये चला काशी शहरिया।
राजा भगीरथ ने गंगा को लाया,
रोज -रोज करती पावन वो काया।
छोड़ा ई रोज कै बजरिया,
नहाये चला काशी शहरिया,
गंगा मइया कै निर्मल लहरिया,
नहाये चला काशी शहरिया।
शिव की जटा से निकली है गंगा,
धो करके पाप हो जाते हम चंगा।
चलो, चलीं धोने चुनरिया,
नहाये चला काशी शहरिया,
गंगा मइया कै निर्मल लहरिया,
नहाये चला काशी शहरिया।
सगर के पुत्रों को गंगा ने तारा,
आता है कुम्भ नहाने जग सारा।
खोल अपने मन कै केवड़िया,
नहाये चला काशी शहरिया,
गंगा मइया कै निर्मल लहरिया,
नहाये चला काशी शहरिया।
माँगूँगी वर मुझे दे दो एक ललना,
खिल जाए फुलवा से हमरो भी अंगना।
कहीं बीत न जाए उमरिया,
नहाये चला काशी शहरिया,
गंगा मइया कै निर्मल लहरिया,
नहाये चला काशी शहरिया।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई