गांव री गुवाड़ आओ | राजस्थानी कविता
गांव री गुवाड़ आओ
( राजस्थानी कविता )
गांव री गुवाड़ आओ, खेत हरसावै है।
ठंडी ठंडी पून बहारां, गांव बुलावै है।
काकड़ी मतीरा खाल्यो, चालो म्हारा खेत म।
मीठी मीठी बातां करस्यां, ठंडी बालू रेत म।
चौपालां अर पगडंडी, गीत सुरीला गावै है।
गांव री महक माटी री, थानै गांव बुलावै है।
हरया भरया खेता म, सरस्यू हरसाई है।
हरियाळी चूनढ़ धाणी, धरा ओढ़ आई है।
भाईचारो हेत घणों, बहारां चाली आवैं है।
ढाई आखर हिवड़ा सू, थानै गांव बुलावै है।
बाजरा रा सीटों तोड़ो, काचरा रो साग ल्यो।
मास्टर जी मारै जणा, बेगा बेगा भागल्यो।
छान झुपड़ रहया कोनी, सड़कां चोखी पावै है।
एक बार आओ पांवणा, थानै गांव बुलावै है।
घेर घुमेर घालल्यो, गणगोरया के मेला म।
हंस हंस कै बतळावां, आओ आपा भैळा म।
हेली नोहरा थे कद आस्यो, तान लगावै है।
गांव चालां आपा दोन्यू, म्हानै गांव बुलावै है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )