दीप प्यार का जलाने चला हूं | Geet deep pyar ka
दीप प्यार का जलाने चला हूं
( Deep pyar ka jalane chala hoon )
मुस्कानों के मोती लुटाते दीप प्यार का जलाने चला हूं।
खुशियों से भरे दामन मेरा रिश्तो को निभाने चला हूं।
दीप प्यार का जलाने चला हूं
गीतों की रसधार लिए गीत कोई गुनगुनाने चला हूं।
शब्द सुधारस प्यार की कविता कोई बनाने चला हूं।
प्रित प्रेम के तराने लेकर संगीत में स्वर सजाने चला हूं।
शीतलता उर भरकर भाई भाव की गंगा बहाने चला हूं।
गीत प्यार का जलाने चला हूं
उठती लहरें मन में मेरे माला मोतियों की पिरोने चला हूं।
लेखनी ले हाथों में मेरे कला कलम की दिखाने चला हूं।
सत्यं शिवं राष्ट्रप्रेम की अलख दिलों में जगाने चला हूं।
तूफानों से टकराकर अंधकार मन का मिटाने चला हूं।
दीप प्यार का जलाने चला हूं
घर घर में हो नेह की धारा भाईचारा फैलाने चला हूं।
स्वाभिमान हदय भरकर जग में सीना ताने चला हूं।
प्रेम खुशबू महके आंगन में चमन कोई लगाने चला हूं।
चंदन तिलक लगा माथे पे रिश्तो को महकाने चला हूं।
दीप प्यार का जलाने चला हूं
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )