दौलत मेहमां है दो पल की
( Daulat mehman hai do pal ki )
यश वैभव में भूल रहे सब, क्यों धन के पीछे तूल रहे।
अपनों से अब करके यूं दूरी, क्यों मंझधार में झूल रहे।
दो पल की जिंदगानी प्यारे, दौलत मेहमा है दो पल की।
किस बात का घमंड तुझे, हद से ज्यादा दौलत छलकी।
दौलत मेहमां है दो पल की
ये पैसा ये शानो शौकत, ये सारे रुतबे ठाठ बाट।
चले गए वो महारथी सब, मिट गए सारे राजपाट।
अपनापन अनमोल जग में, विनम्रता होती जल सी।
प्यार के मोती लुटाओ, चिंता ना हो चल अचल की।
दौलत मेहमां है दो पल की
ये सांसो की डोर जीवन, हंसी खुशी बिताता चल।
मत कर अभिमान धन का, सेवाभाव बनाता चल।
औरों की खातिर प्यारे तुम, मत करना बातें हल्की।
धन की गति धूप छांव, दौलत मेहमां है दो पल की।
दौलत मेहमां है दो पल की
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )