मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं | Geet main Anabhigy Kab Tak Rahoon
मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं
( Main anabhigy kab tak rahoon )
मुश्किलें सर पे छाये, अपने मुझसे रुठ जाए।
वाणी के तीर चलाए, बोलो मैं कब तक सहूं।
मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं
मार्ग सब अवरुद्ध हो जाए, पग-पग पे तूफां आए।
कोई रहे कमियां टटोलता, बात का बतंगड़ बनाए।
मंझधार में अटकी नैया, बोलो मैं कैसे पार कहूं।
बूते से बाहर हो जाए, उबाल लेता रग रग लहू।
मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं
अंधकार ने घेर लिया है, अपनों ने मुंह फेर लिया है।
कदम कदम पे अड़चनों ने, आ मुझको घेर लिया है।
हिम्मत हौसलों से चलूं,क्यों वक्त का उपहार कहूं।
सुख दुख जीवन के पहलु, संघर्षों में रत सदा रहूं।
मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं
सर से ऊपर पानी जाए, कोई हम से भेद छिपाए।
राहों में जो रोड़े अटकाए, व्यवधानों के ढेर लगाए।
अपना बनके छल कर जाए, बाधाएं कब तक सहूं।
मैं मनमौजी मतवाला, नित मंजिलों को बढ़ता रहूं।
मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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