Geet Munh mein Ram Bagal mein Churi

मुंह में राम बगल में छुरी | Geet Munh mein Ram Bagal mein Churi

मुंह में राम बगल में छुरी

( Munh mein ram bagal mein churi )

 

छल कपट वैर भाव बढ़े, मनमुटाव बढ़ रही दूरी।
अधरों पर मुस्कान धरे, मुंह में राम बगल में छुरी।
मुंह में राम बगल में छुरी

मन के सारे भेद जान ले, मीठी बातें करते रसधार।
अपनापन अनमोल खो गया, तिरोहित हो गया प्यार।
स्वार्थ में डूब रहे रिश्ते नाते, मतलब की हो मजबूरी।
बस दिखावा सा रह गया है, सत्य सादगी खोई पूरी।
मुंह में राम बगल में छुरी

पग पग पे लूटमार मची, धोखे का फैला व्यापार।
भ्रष्टाचार ने पांव पसारे, धोखाधड़ी होकर असवार।
अपनों ने विश्वास खोया, गैरों ने कह दी बातें अधूरी।
प्यार के मीठे बोल कहां, खुद में सिमटी दुनिया पूरी।
मुंह में राम बगल में छुरी

कौन पूछता हाल-चाल है, किसको पड़ी मिलन की।
धन के लोभी लूट रहे सब, सुख चैन घड़ी चमन की।
नफरत की दीवारें सारी, बढ़कर गिरा दो यारो पूरी।
प्यार के पुष्प महका दो, मिट जाए दिलों की दूरी।
मुंह में राम बगल में छुरी

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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