घायल खेतों की तस्वीर दिखाने आया हूँ | Kavita
घायल खेतों की तस्वीर दिखाने आया हूँ
( Ghayal kheton ki tasweer dikhane aya hoon )
घायल जख्मी खेतों की तस्वीर दिखाने आया हूँ।
बहते हुवे अश्कों के अंश अपने संग भी लाया हूँ।।
मैने अपनी आंखों से खुद इनको रोते देखा है।
प्रकृति के प्रारहों से घायल होते देखा है।।
ओले रुपी गोलों से तन छलनी-छलनी होते है।
अंधड़ और बेमौसम बारिश आकर सबकुछ खोते है।।
सुखा-बाढ़ों के भयंकर सितमों ने सताया हूँ।
घायल जख्मी खेतों की…….
अपना दुखड़ा अपने मुख से आप सुनाना चाहता हूँ।
मेरे अन्तर्मन के छाले तुम्हे दिखाने चाहता हूँ।।
चोटिल जख्मी होकरके भी जुल्म बहुत से सहता हूँ।
रहता हूँ चुपचाप हमेशा नही किसी से कहता हूँ।।
सच बुझो तो अपनों ने ही लूट-लूटकर खाया हूँ।
घायल जख्मी खेतों की…….
शदीयों से सियासत देखो मुझपर होती आई है।
मेरा हित चाहने वालों ने मुझको ठेस पहुंचाई है।।
अब तक सबसे ज्यादा मुझको अपनों ने ही लूटा है।
नही होता विश्वास किसी पर मेरा भरोसा टुटा है।।
जिन पर किया भरोसा मैने उन्होने अपंग बनाया हूँ।
घायल जख्मी खेतों की…….
मेरी फसल की हालत देखो दुर्गति कर रखी है।
किसानों की कष्ट कमाई इसी मे भर रखी है।।
सोने कैसी फसल बिकती कोड़ीयों के भाव में।
मजबूरी मे पड़े बेचनी नही बेचता चाव मे।।
ओणे-पोणे मिलते हुवे दामों ने रुलाया हूँ।
घायल जख्मी खेतों की…..
जब-जब कोई जबरदस्ती अधिग्रहण मेरा करता है।
तब-तब मेरी हरियाली को चाँद ग्रहण -सा लगता है।।
जब अन्नदाता विवश होकर आत्महत्या करता है।
जैसे वृद्ध पिता का बैटा जवान उम्र मे मरता है।।
कल किसकी बारी आयेगी यही सोच घबराया हूँ।
घायल जख्मी खेतों की…..
चौटिल घायल जख्मी इतना न करहाने पाता हूँ।
धरतीपुत्र से मैं अपने सारा गम छुपाता हूँ।।
कभी-कभार मिलकरके हम अपना दुख रो लेतें हैं।
वो मुझको और मैं उसको आपस मे साहरा देते हैं।।
उसकी तकलीफों ने मैं आज अन्दर सक हिलाया हूँ।
घायल जख्मी खेतों की……..
दलालों के चौतरफा वारों से चौटिल खेत हुआ।
सोने जैसी मिट्टी बनकर कड़वा बारुद रेत हुआ।।
बाँझ बनादी भुमी इसकी कोख खत्म होने को है।
सच बुझो तो खेतों का उपजाऊपन खोने को है।।
कैसे अन्न उपजेगा आगे विकल्प ढुंड न पाया हूँ।
घायल जख्मी खेतों की………
खेतों की पीड़ा सुनकरके ऐसा कुछ हुआ होगा।
बह्रमंड़ के हर कोने तक को अश्को ने छुआ होगा।।
धरती कांप ऊठी होगी और अम्बर भी रोया होगा।
देवी और देवता सारे खुद ईश्वर भी रोया होगा।।
“विश्वबंधु” दुनिया के जुल्मों ने ही लिखने सिखाया हुं
घायल जख्मी खेतों की……..