बे हया फ़िर शबाब क्यों उतरे | Ghazal be haya
बे हया फ़िर शबाब क्यों उतरे
( Be haya phir shabab kyon utre )
बे हया फ़िर शबाब क्यों उतरे
शक्ल से ही हिजाब क्यों उतरे
जब जुबां है अदब भरी हर पल
बेहया पर ज़नाब क्यों उतरे
है मना बिन हिजाब के रहना
फ़िर बे पर्दा गुलाब क्यों उतरे
हर बुरी नजरें से ही बचती है
चेहरे से ही नक़ाब क्यों उतरे
क्या हुआ बात तू बता आज़म
आज आंखों में आब क्यों उतरे