बहकी-बहकी सी | Ghazal Behki Behki Si
बहकी-बहकी सी
( Behki Behki Si )
बहकी-बहकी सी वो रहती तो है कब से,
मन ही मन में कुछ वो कहती तो है कब से !
चल रहा है क्या ना जाने दिल में उसके,
बन शिला सी सब वो सहती तो है कब से !
राज कुछ तो है छुपा दिल में दबाये,
शांत सागर सी वो बहती तो है कब से !
मयकदों में है हुआ जो आना जाना,
इसलिए रहती वो बहकी तो है कब से !
फूल से खिलते है जब जब वो आती है,
पंछी बन वो खूब चहकी तो है कब से !!