चाहिए | Ghazal Chahiye
चाहिए
( Chahiye )
जब से दिल धड़का है वो गुलफ़ाम तबसे चाहिए
एक बस हां एक ही वो शख़्स रब से चाहिए।
मेरी ज़िद है वो निगाहों से समझ ले बात सब
उस दिवाने को मगर इज़हार लब से चाहिए।
भर ले तू परवाज़ लेकिन क़ैद होना है तुझे
बस बता बांहों की ये जंज़ीर कबसे चाहिए।
क्या है अच्छा क्या बुरा ये फ़ैसला करता ख़ुदा
हां मगर कुछ काम करने मुसतहब से चाहिए।
है नहीं जिनको शऊरे बज़्म उनसे माज़रत
अंजुमन में लोग थोड़े बा-अदब से चाहिए।
मैं हुई पाबंद लेकिन उसको भी इक शर्त है
सिर्फ़ इक मेरी हुकूमत दिल पे अबसे चाहिए।
है पड़ा खाली मकां दिल का कहो उससे नयन
है किराया माफ़ उसको रहले जबसे चाहिए
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )