चाहता हूँ | Ghazal chahta hoon
चाहता हूँ
( Chahta hoon )
प्यार का अपने पिला दे ए सनम पानी मुझे
तू बना ले ज़िंदगी भर के लिये जानी मुझे
प्यार की करके फुवारे हर किसी पर हाँ मगर
नफरतें हर शख्स के दिल से करनी फ़ानी मुझे
इसलिये ही बढ़ गयी रिश्ते वफ़ा में दूरियां
दे गया झूठी वही कल वादा ऐ बानी मुझे
दुश्मनों ने कर दिया माहौल जो ये दर्दनाक
अब हवाएँ अम्न की है गाँव में लानी मुझे
ऐ हसीनों लौट जाओ अब मेरे कूचे से तुम
चोट दिल पर और उल्फ़त में नहीं खानी मुझे
इसलिये लगता नहीं परदेश में दिल अब मेरा
आ रही है याद यारों आजकल नानी मुझे
चाहता हूँ अब हक़ीक़त में मुझे आज़म मिले
ख़्वाब में ही जो सताती रोज़ है रानी मुझे