चेहरा गुलाब जैसा है
चेहरा गुलाब जैसा है

चेहरा गुलाब जैसा है

( Chehra gulab jaisa hai )

 

मुस्कुराते हुए लब और चेहरा गुलाब जैसा है
अब तो वो मेरे लिए बस इक ख्वाब जैसा है

 

काबीलियत नहीं मेरी शायद जिसे पाने की
जिंदगी में मेरे लिए वह उस खिताब जैसा है

 

मेरा वजूद मुनव्वर है आज भी उसके दम से
ज़ीस्त के फलक पर वह आफताब जैसा है

 

उसकी नजर में मैं हूं महज बिखरते पन्नों सी
पर मेरे लिए तो वह मुकम्मल किताब जैसा है

 

दिल के हर जख्म को शुमार नहीं करते हैं
उसे याद रखना भी यकीनन हिसाब जैसा है

 

तड़पती चाह में उसका बसेक झलक दिखना
गर्म -ए -सफर में प्यासे के लिए आब जैसा है

 

इश्क में भी मुद्दे यहां लोग खूब उछालते रहते
हालेदिल भी जम्हूरियत के इंतखाब जैसा है

 

श्रुति कुछ करो अब रिफाहे आम के खातिर
ये हर एक शख्स के जीवन में सवाब जैसा है

?

 कवयित्री :- श्रीमती देवी ‘श्रुति’
सा.रा.सी.रा. बालिका इण्टर कालेज अयोध्या ,
( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

चमन में अब निखार है शायद | Ghazal

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here