झूठ घरों पर काबिज़ था | Jhooth Shayari
झूठ घरों पर काबिज़ था
( Jhooth gharon par kaabij tha )
झूठ घरों पर काबिज़ था
करना यूँ नाजाइज़ था
साथ न दे वो मुश्किल में
रब अपना तो हाफ़िज़ था
झूठ फ़रेबी था दिल से
समझा जिसको वाइज़ था
चाहे वो जो काम ग़लत
मंजूर न वो हरगिज़ था
मुझसे जलने लोग लगे
यार हुआ जब रामिज़ था
पहली उल्फ़त है आज़म
सुर्ख़ उसी का आरिज़ था
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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