Dard Bhari Ghazal | जिंदगी क्यों तेरी मर गई आरजू
जिंदगी क्यों तेरी मर गई आरजू
( Jindagi kyon teri mar gai aarzoo )
जिंदगी क्यों तेरी मर गई आरजू
अब न दिल में कोई भी बची आरजू
चाहकर भी नहीं कुछ उसे कह सका
रोज़ दिल में तड़फती रही आरजू
ढूंढ़ता ही रहा हूँ गली दर गली
जिंदगी की मेरी कब मिली आरजू
कह रहा वो मुझे हूँ किसी और का
रोज़ जिसकी मुझे है लगी आरजू
पहली तो जिंदगी की न पूरी हुई
क्या जगे दिल में मेरे नयी आरजू
और कोई नहीं भाये दिल को मेरे
जीस्त की एक तू बन गयी आरजू
दौर ऐसा आया जीवन में आज़म की
तोड़ती दम रही है सभी आरजू
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )