रात दिन आंखों में ही नमी ख़ूब है | Ghazal
रात दिन आंखों में ही नमी ख़ूब है
( Raat din aankhon mein hi nami khoob hai )
रात दिन आँखों में ही नमी ख़ूब है
यादों की चोट दिल पे लगी ख़ूब है
ए ख़ुदा कर दें ऐसी बरसी बुझ जाये
प्यार की प्यास दिल को लगी ख़ूब है
दूर हो ये तन्हाई जिससे जीस्त की
दोस्त की जुस्तजू हो रही ख़ूब है
दुश्मनी की नज़र देखने वो लगा
जिससे भी दोस्ती की कभी ख़ूब है
कर दिया है किसी ने उसका जिक्र कल
सुनकर आँखें मेरी रो उठी ख़ूब है
कौन समझेगा जज्बात दिल के मेरे
ग़म की दिल में शायरी ख़ूब है
सो नहीं पाया है “आज़म” तो रात भर
देखता है राहें आपकी ख़ूब है