सुना है
सुना है

सुना है

( Suna Hai )

 

कभी कभी

खंडहर भी

बोल उठते हैं

 

वीराने भी

खुद ब खुद

सज जाते हैं

 

झींगुरों की

ताल पर

बेताल भी

नाच उठतें हैं

 

सहरा में भी

आब’शार

मिल जाते हैं

 

कभी तो

मुर्दा जिस्मों में

बसती

रूह भी

कराह उठेगी

 

सोई ज़मीर

उस आह से

शायद

होश में

आयेगी

 

इंसान की

हैवानियत भी

शायद

कभी तो

अपना

मुँह छुपायेगी

 

दरिंदा हुये

बश्र

कभी तो

 

इबलीस के नहीं

आदम की

जात

फिर से

बन पायेगी.

Suneet Sood Grover

लेखिका :- Suneet Sood Grover

अमृतसर ( पंजाब )

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