सताता है बहुत

( Satata hai Bahot )

है तबीयत में बला की ज़िद सताता है बहुत
फिर भी जाने क्यों मुझे वो शख़्स भाता है बहुत।

अब तवक्को ही नहीं उससे किया करती कोई
कर के कुछ एहसान वो मुझपे जताता है बहुत।

बेवफ़ाई से रुलाना शग़्ल है उसका मगर
महफ़िलों में वो वफ़ा के गीत गाता है बहुत।

बन सको फ़ौलाद तो बन के दिखाओ औरतों
ग़र झुकोगी तो ज़माना ये झुकाता है बहुत।

है नहीं बंदा बुरा उसमें है खामी इक यही
जब मिले तो खूबियां अपनी बताता है बहुत।

वो चहीता है सभी का सबसे उसकी दोस्ती
बात ये की हां में हां सबकी मिलाता है बहुत ।

रोज़ उसको भूलने की कोशिशें करती नयन
क्या करूं वो रोज़ लेकिन याद आता है बहुत।

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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