Ghazal shabab chehra

वो खिला सा शबाब में चेहरा | Ghazal shabab chehra

वो खिला सा शबाब में चेहरा

( Wo khila sa shabab mein chehra )

 

 

यार  दीदार  कैसे होता फ़िर

था  हंसी जो हिजाब में चेहरा

 

इस तरह देखा उस हंसी ने कल

वो दिखे हर गुलाब में चेहरा

 

और वो हसने में लगा मुझपर

था यहाँ भीगा आब में चेहरा

 

के हुई आरजू  नहीं पूरी

था इक बस इंतिखाब में चेहरा

 

ग़ैर बनकर छुड़ा गया झट से

था जो इक दस्तियाब में चेहरा

 

भेज दे जिंदगी में आज़म की

रब जो आया ख़्वाब में चेहरा

 

इतिखाब- कोई एक पसंद कर लेना

दस्तियाब- हाथों में कोई चीज

 

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

यह भी पढ़ें :-

प्यार की अब होती फुवार कहाँ | Ghazal pyar ki phuvar

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *