याद आती है आशियाने की | Ghazal Yaad Aati Hai Aashiyane ki
याद आती है आशियाने की
( Yaad Aati Hai Aashiyane ki )
है अदा यह भी रूठ जाने की
कोई कोशिश करे मनाने की
इन अदाओं को हम समझते हैं
बात छोड़ो भी आने-जाने की
आज छाई हुई है काली घटा
याद आती है आशियाने की
एक दूजे को यह लड़ाते हैं
नब्ज़ पहचान लो ज़माने की
आजकल हर बशर के होंठों पर
सुर्खियां हैं मेरे फ़साने की
उड़ रहे हैं परिंद जो हर सू
जुस्तजू है इन्हें भी दाने की
कौन कब तक किसी के साथ चले
किसमें ताक़त है ग़म उठाने की
प्यास इतनी शदीद है साग़र
कौन जुर्रत करे बुझाने की
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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