याद की दिल में किसी की रोज़ ख़लिश है बहुत | Ghazal yaad ki
याद की दिल में किसी की रोज़ ख़लिश है बहुत!
( Yaad ki dil mein kisi ki roz khalish hai bahut )
याद की दिल में किसी की रोज़ ख़लिश है बहुत!
रोज़ जिसको ही भुलाने की की कोशिश है बहुत
वो बनेगा ही नहीं मेरा हक़ीक़त में कभी
उठ रही दिल में यहाँ जिसकी ही ख़्वाहिश है बहुत
ढो रहा हूँ बोझ मैं बेरोजगारी का यहाँ
रोज़ मैंनें नौकरी की सिफ़ारिश है बहुत
छाँव उल्फ़त की यहाँ होगी भला फ़िर किस तरह
नफ़रतों की देखिए जब यहाँ तो यार तपिश है बहुत
क्या हुआ होगा यहाँ ऐसा मगर जो देखिए
हर तरफ़ देखो लगी ऐ यारो मजलिस है बहुत
किस तरह आबाद हो घर प्यार के फूलों से ही
अपनों से अपनों में देखी यार रंजिश है बहुत
दी नहीं है दाल ओ सामान फ़िर भी तो उधार
सच कहूँ मैं आज उससे की गुज़ारिश है बहुत
और वो ही बन गया दुश्मन यहाँ मेरा मगर
देखिए आज़म करी जिसकी नवाजिश है बहुत
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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