गुलमोहर | Hindi sahitya ki rachna
गुलमोहर
( Gulmohar )
अगर कोई मुझसे पूछे के एक ऐसी चीज़ जो हमेशा मेरे साथ रही है, तो मैं कहूँगा वो मोहल्ले का पुराना गुलमोहर । जिसने कई बसंत देखे , कड़ी धूप और बरसातें देखी , देखा उसने पतंगो को पेच लड़ते और टूटते , देखा उसने बच्चों को उसकी शाखाओं पर चढ़ते झूलते, और देखा मेरा तुम्हारा प्यार।
वो भारी दोपहरी में मेरा उस गुलमोहर की छाँव में तुम्हारा इंतज़ार करना देखा, जब तुम घर लौटा करती थी और तुम्हारी एक झलक पाने मैं तपती धूप में गुलमोहर के नीचे घंटो खड़े रहता। तुम्हारी सहेलियों का मुझे देख कर तुम्हें इशारे से बताना फिर धीमे से खिलखिलाना ।
धूप से तपती ज़मीन पर जब पानी की वो पहली बूँदें मिट्टी की सौंधी सौंधी ख़ुशबू ले कर आती थी, मैं तुम्हारी राह देखते उस ह्रितु में खो जाया करता था। अनायास ही तुम्हारे मेरे मिलन के ख़याल मेरे मन मस्तिष्क को भिगो कर मुझे प्रेम रस में सराबोर कर देता ।
तुम्हारे इत्र की भीनी भीनी महक ऐसा लगता जैसे इस गुलमोहर ने क़ैद कर ली हो, तुम्हारे इंतेज़ार में ये भी खड़ा रहता मेरी तरह ।
फिर आख़िर वो दिन आया जब तुमने मेरे प्रेम का जवाब दिया, मेरे प्रेम को तुमने अपने चुंबन से रंग दिया। समय के साथ के गुलमोहरऔर हमरा प्रेम बढ़ता रहा और फ़िर एक दिन इस्स गुलमोहर की छाँव मेन जब मैंने तुम्हारे साथ जीवन व्यतीत करने की चाह व्यक्त की तो तुमने शर्मा कर हामी भरी ।
बचपन, यौवन और वृद्धावस्था इसी गुलमोहर की छाँव मे व्यतीत हो ऐसे सपने देखे मगर शायद नियति को ये मंज़ूर ना था।
एक पतझड़ मेन तुम मुझसे दूर चली गयी, और एक कंकाल सी भाती झड़ पड़ा गुलमोहर भी।
लगा जैसे मेरे जीवन के सरे रंग खो से गए हो. समय से साथ तो गुलमोहर फ़िर वापस आ गया मगर तुम ना आयी.
आज भी मैं हमारे प्यार की गंध उसस गुलमोहर मे तलाशता हु।
सोचता हु के जो पल वाला हमने बिताए थे वो अब भी वही होंगे, उस गुलमोहर की छाँव मेन सुरक्षित, ताज़ा, जिसे कोई छू नहीं सकता, सिवाए मेरे, तुम्हारे और इस गुलमोहर के । शायद गुलमोहर ने सिर्फ़ तुम्हारा इत्र क़ैद नहीं किया था, क़ैद किया था हमारे प्रेम को भी , तुम्हें भी और मुझे भी ।
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लेखक : समीर डोंगरे
जिला रायपुर
( छत्तीसगढ़ )
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