गुलशन में ही शबनम ए दौर नहीं है | Gulshan shayari
गुलशन में ही शबनम ए दौर नहीं है
( Gulshan mein hi shabnam e daur nahin hai )
गुलशन में ही शबनम ए दौर नहीं है
शाखों पर ही फूल खिला और नहीं है
महंगाई में दाल ख़रीदे क्या आटा
आया अच्छा ही यारों दौर नहीं है
छोड़ फ़कीर है मांगे है रोठी आटा
ये कोई लोगों देखो चोर नहीं है
नफ़रत की टूट सभी जाती दीवारें
टूटा उल्फ़त का देखो छोर नहीं है
याद उसी की भूल न पाया मैं यूं ही
दिल पे चलता कोई भी जोर नहीं है
दोस्त हुआ है ऐसा क्या आज यहां तो
आज गली में बच्चों का शोर नहीं है
ग़ैर न होता नजरों में आज़म उसकी
बांधी उसनें रिश्तें की डोर नहीं है