
गुलज़ार हो तुम
( Gulzar ho tum )
हजारों ख्वाहिशें दबी दिल में, कहीं ये दम यूं ही न निकल जाए,
इंतज़ार ए उम्मीद में कहीं, आरजूओं का मौसम न बदल जाए।
रगों में खौलता ये लहू कहीं, बेसबर आंखों से न बह जाए ,
संभाल आंगन ये तेरे सपनों का, कहीं सपनों में ही न बिखर जाए।
जिस्म-ओ-जां यूं बेजुबां बनकर, बंद घर में न ख़ाक हो जाए,
बनके खुदगर्ज करले गुस्ताखी, तेरी चुप्पी न गुस्ताख़ हो जाए।
समेट ले ये उधड़ती जिंदगानी, दे के दस्तक फरार न हो जाए,
ख़्वाब छत पे जो टहलते है अक्सर, पंछी उड़ जाए दरार न रह जाए।
हो जा गुलज़ार भूल बेजार सा मन, के कभी तुझे तोला न परखा जाए ,
जुनून हो जीतने का अगर, हार को भी फिर छुपा के रखा न जाए।
खुद को पाने की जिद हो मुकद्दर से, तेरी किस्मत को अब न टटोला जाए,
पहाड़ जैसे इरादे रख के निकल, सूरज हैं तू तुझे शब-ए-चांद न बोला जाए।

अनिता गहलोत
( भारत )
कवि परिचय: अनिता गहलोत वर्तमान में सहायक प्रोफेसर (अंग्रेजी साहित्य)के पद पर कार्यरत द्विभाषीय (अंग्रेज़ी/ हिन्दी) कवि हैं। उनकी कविताएं ‘मूड’ आधारित हैं जिनमें अधिकांशतः नारी उत्पीड़न एवम् सशक्तिकरण, प्रेम, देशप्रेम, विभिन्न सामाजिक रिश्तों, भारतीय त्यौहारों एवं प्रकृति और बदलते भारतीय मौसम के अनुसार बदलते मूड पर आधारित सृजन हैं। उनकी कविताएं मार्मिक, हृदस्पर्शी एवं बहुत ही सरल भाषी हैं। उनकी कविताएं कई पत्रिकाओं में अपनी जगह बना चुकी हैं।