तेरी गुस्ताख़ बातें

( Teri gustakh baatein )

 

तेरी गुस्ताख़ बातों से दिवाना टूट जाता है

हुई थी जो ख़ता तुम से भरोसा टूट जाता है

 

रहें हो ना मगर अब तुम सुनाऊँ दास्ताँ किसको

मोहब्बत के लिखे  नग्में फ़साना टूट जाता है

 

गुजारे थे शहर में वो कभी बीतें हुए पल थे

तेरी यादों का मंजर फिर किनारा टूट जाता है

 

बना था काँच का टुकड़ा मगर शीशा सा चमके वो

गिराकर फिर ज़मीं पर वो यूँ प्याला टूट जाता है

 

बना डाला सनम तुमने ज़माने में मुझे पत्थर

कभी जो टूट कर चाहा वो शीशा टूट जाता है

 

तेरी बाहों पनाहों में बड़ा ये लुत्फ़ झोंका था

मिला था जो सुकूँ पल भर नज़ारा टूट जाता है

 

सज़ा क्या ‘वीर’ तुझ को दे मगर तू बेवफ़ा निकली

मिला धोका वफ़ा में तो  सहारा टूट जाता है

 

©वीरकीकलम47
वीर ठाकुर
मुरैना ( मध्यप्रदेश )

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