गुस्ताखी | Gustakhi
गुस्ताखी
( Gustakhi )
कलियों के भीतर यूं ही , आ नही जाती महक
समूचे तने को ही , जमीं से अर्क खींचना होता है
चंद सीढ़ियों की चढ़ाई से ही, ऊंचाई नही मिलती
अनुभवों के दौर से गुजर कर ही, सीखना होता है
सहयोग के अभाव मे कभी, मंजिल नही मिलती
अकेले के दम पर ही, मुकाम हासिल नहीं होता
जरूरी है ,अपने स्वाभिमान को भी जिंदा रखना
एहतियात और के जमीर का भी,रखना चाहिए
होती हैं गुस्ताखियां भी,जाने अंजाने हर किसी से
समझकर ही हर किसी को भी,चलना चाहिए
( मुंबई )
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