हमारे कभी | Hamare Kabhi
हमारे कभी
( Hamare Kabhi )
चाँद उतरा न आँगन हमारे कभी
उसका वादा था होगें तुम्हारे कभी
झूठ वह बोलकर लूटता ही रहा
था यकीं की बनेंगे सहारे कभी
दुख ग़रीबों का मालूम होगा तभी
मेरी बस्ती में इक दिन गुज़ारे कभी
मुझको अरमान यह एक मुद्दत से है
नाम मेरा वो लेकर पुकारे कभी
हमसफ़र बन के तुम साथ चलते रहो
गर्दिशों में न होगें सितारे कभी
हर तरफ़ अब खिज़ा ही नज़र में बसी
अब न लौटें वो शायद नज़ारे कभी
उसकी ही बेवफ़ाई को रोते हैं हम
जिसके सदक़े हज़ारों उतारे कभी
ऐ मुक़द्दर बता दे तू इतना मुझे
क्या मिलेंगे प्रखर को सहारे कभी
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )