हमसे अब नाराज़गी अच्छी नहीं
हमसे अब नाराज़गी अच्छी नहीं
आँखों में इतनी नमी अच्छी नहीं
हमसे अब नाराज़गी अच्छी नहीं
बज़्म में बैठे वो नज़रें फेर कर
इश्क़ में ये बेरुख़ी अच्छी नहीं
हौसला ता-ज़िंदगी रखना बुलंद
इस क़दर आज़ुर्दगी अच्छी नहीं
वो सराबों में ग़ज़ालों की तरह
इश्क़ की सर गश्तगी अच्छी नहीं
पास रखिए अपनी उल्फ़त का ज़रा
प्यार में आवारगी अच्छी नहीं।
हर तरफ तुमको ही देखे ये नज़र
बज़्म में तेरी कमी अच्छी नहीं
मीर ग़ालिब सा सुख़न दरकार है
आज मीना शायरी अच्छी नहीं
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
यह भी पढ़ें:-