Har khushi se garibe Aazam

हर ख़ुशी से ग़रीब ए आज़म | Gareeb Shayari

हर ख़ुशी से ग़रीब ए आज़म

( Har khushi se Garibe Aazam )

 

 

हर ख़ुशी से ग़रीब ए आज़म!

बदलेगा कब नसीब ए आज़म

 

इसलिए शहर छोड़ आया हूँ

थे यहां सब  रकीब ए आज़म

 

हाले दिल किसको सुनाऊं मैं

की न कोई क़रीब ए आज़म

 

कैसे उसके ख़िलाफ़ बोलूं मैं

आदमी वो नजीब ए आज़म

 

छोड़ दे दुश्मनी की बातें अब

बन जाये  तू हबीब ए आज़म

 

हर तरफ़ है नमी निगाहों में

कैसा मौसम अजीब ए आज़म

 

प्यार का मिलता फूल जो मुझको

हूँ नहीं  ख़ुशनसीब  ए  आज़म

 

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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सांसों में खुशबू यार की | Ghazal

 

 

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