हरे है ज़ख़्म अब तक भी दिलों पे दाग़ है बाकी
हरे है ज़ख़्म अब तक भी दिलों पे दाग़ है बाकी
हरे है ज़ख़्म अब तक भी दिलों पे दाग़ है बाकी।
धुआँ- सा उठ रहा शायद कहीं पे आग है बाकी ।।
नहीं ग़र भूल पाते हो करी कोशिश भुलाने की।
बहुत यादें सताती है समझ लो राग है बाकी।।
भले थे लोग पहले के चले अब वो गए सारे।
हँसा तो उङ गए लेकिन यहां अब काग है बाकी।।
रहे जनता गरीबी में न कोई दोष है उनका।
मलाई खा गए नेता अभी बस झाग है बाकी।।
“कुमार”अपना नहीं कोई भले तुम आजमा देखो।
नहीं तुम होश में पूरे जरा सी जाग है बाकी।।
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