Haria Bhojpuri Kahani

हडिया | Haria Bhojpuri Kahani

” हडिया ”

( Haria ) 

एगो गांव में एगो लड़की रहे उ बहुत सुन्दर रहे लेकिन उ बहुत झगडाईन रहे । गांव के सारा लोग ओकरा से परेशान रहे। रोज-रोज उ केहु ना केहु से झगड़ा फंसा लेत रहे ।

ओके घर वाला लोग भी बहुत परेशान रहे ओके ठिक करेके सारा उपाय अपना लेलक लेकिन उ लड़की ना सुधरल । घर अउर गांव वाला लोग ओकरा से बहुत डेरात रहे एला जब भी केहु उ लड़की के देखें तऽ धीरे से खसक लेवे ।

धिरे-धिरे उ बड़हन होते ग‌ईल अउर ओके बियाह के चिंता ओके घर वाला लोग के सतावेलागल । जे भी ओके देखें आवे उ ओह लड़की से बियाह करेके त‌ईयार हो जाये । लेकिन ज‌इसे ही लोग से ओके बारे में पता चले तऽ लोग उहा से भाग जाये ।

ई बात धिरे -धिरे दुर-दुर लेक फ‌इल ग‌ईल अउर जब ई बात एगो किसान के पास पहुंचल जेके एगो बेटा बियाह करें लायेक रहे तऽ उ आपन बेटा के विवाह उ लड़की से करें के निश्चय क‌ईलक अउर तब किसान पंडि जी से जतरा निकलवा के उ लडकी के देखें ला निकल ग‌ईल ।

अउर जब उ लड़की के घरे पहुंचने तऽ उनके खुब खातीरदारी भ‌इल । खातिरदारी भ‌इले के बाद उ लड़की के देखें के प्रसताव रखने । लड़की के गारजीयन अपने में सलाह मशवरा क‌इले के बाद लड़की के देखावे ला राजी भ‌इल लोग ।

अउर ओके अच्छा से त‌ईयार क‌इले के बाद लड़की के देखावे लाइल लोग । लड़की जब उ देखने तऽ उनके पसंद आ ग‌इल अउर ऊ आपन ल‌इका के विवाह उ लड़की से करें के त‌इयार हो ग‌इने । लेकिन लड़की के गार्जियन लगे एगो शर्त रखने ।

कि जब हम विवाह कराके लड़की के विदा करा के ले जायेम तऽ लड़की के डोली के पिछे एगो बैल गाड़ी पे खुब हंडिया रख दिहऽ अउर ओके साथे एगो मजबुत लाठी रख दिहऽ । ई बात सुन के सब केहु सोच में पड़ ग‌ईल ।

लेकिन ल‌इका के बाबु जी के बात सब केहु मान ग‌ईल अउर जे दिन ल‌इकी के विदाई भ‌इल ओ दिन शर्त के अनुसार सब व्यवसथा के साथ लडकी के विदाई भ‌ईल। सब केहु वापस लौटे लागल ।

अउर जब रास्ता में गाड़ी में हचका पड़े अउर आवाज करें तऽ ल‌इका के बाउजी जे टाएर पे रखल लाठी उठा के हंडिया पे एक लाठी मारस अउर खुब हंडिया पे खिसीयास ।

ई करते करते जब उ आपन घर लेक पहुंचने तऽले सब हंडिया फुट ग‌ईल अउर ओके बहु जे डोली में ब‌इठल रहली उ ई सब देख के डेरा ग‌इल अउर सोचे लागल कि हमर ससुर बहुत खिसीयाह बाने अगर हम तनको बदमाशी करेम तऽ हमर ससुर हमरा बहुत मार मरीहन । एला उ शांती से घर के सारा काम अउर सबके सेवा करें लागल अउर अच्छा से रहे लागल ।

 

रचनाकार – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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