Hasratein shayari

हसरतें | Hasratein shayari

हसरतें

( Hasratein )

 

 

हमारी  हसरतें भी थी  गुलों  के बीच  रहने  की,

मगर  ताजिन्दगी  काँटों में ही उलझे रहे हरदम।

 

हम अपनी चाहतों के लाश को काधे पे ले करके,

गुजारी  जिन्दगी  को  सामने  हँसते  रहे  हरदम।

 

जो भी मिला इस  जिन्दगी  में मुझसे आकर के,

उसी से प्यार की चाहत मे हम अटके रहे हरदम।

 

कई रातें गुजारी नींद बिन, तारों कि महफिल में,

यही सोचा कि शायद आ मिले मुझसे मे हमदम।

 

खनक चाँदी के सिक्कों  में नही अब कागजी है,

मगर मन शेर का कागज में ही उलझे रहे हरदम।

 

क्या लाया था जो तेरा है,क्या तेरा है जो खो देगा,

यही पे सब मिला तुमको, यही के सब रहे हरदम।

 

खुदा के बिन इशारे  के यदि, पत्ता नही  हिलता,

मेरे हर एक मिसरे से वो  क्यो दुखते रहे हरदम।

 

मै आधी रात को दो गजल मिसरे लिख रहा हूँ यू,

उजाले मे मैं दिल के जख्म को ढाके रहा हरदम।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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