हे प्रभु | Hey Prabhu Bhojpuri Kavita
हे प्रभु!
( Hey Prabhu )
मिटा द मन के लोभ
सब कुछ पावे के जे हमरा
लागल बा दिल पे चोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
दे सकऽ तऽ तू दऽ
प्रेम अउर आराधना
कर सऽकी हम पूजा अउर प्रार्थना
ना रहे मन में दूख अउर खोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
जग जानता हम जानतानी
सब बेकार बा तोहरा सिवा, ई मानतानी
फिर काहे मन घोटता
सब कूछ पावे ला खून के घोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
दऽ तू हम पे एतना पहरा
छोड़ दी सब कूछ, पे तोहरा
अउर ले सकी तोहर गोंड में ओट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
मन के गति बा सबसे तेज
कइसे करी ऐसे परहेज
करें के चाहतानी तोहके भेंट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
तू बनऽ हमर संघाती
हम बनी दिया अउर तू बनऽ बाती
बस मन के तू ल पोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
नाम- उदय शंकर प्रसाद
पिता – बासुदेव प्रसाद भगत
माता- सरोज दवी
शिक्षा- परा स्नातक (फ्रैच )
डिप्लोमा – इटालियन
सटिफिकेट कोरस – पोलिस
पि. जी. डिप्लोमा – थियेटर एंड आर्ट
पता- नवकि बजार, सरकारी अस्पताल के पिछे
थाना- बगहा -१
जिला- पंशिचम चम्पारण
राज्य -बिहार
पिन-845101
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