
वालिदैन
( Walidain )
फूल खिलाई जिस डाली ने,
कभी न तोड़ो वो डाली।
क्या कसूर है मुझे बताओ,
क्यों हुआ बेघर माली?
जो हाथ झुलाया तुमको झूला,
झूला तूने तोड़ दिया।
जो तेरे खातिर सागर में डूबा,
वो मोती तू छोड़ दिया।
जिस नशे में चल रहा है तू,
ये दौर नहीं टिकनेवाला।
जो दुर्दिन झेल रहे वालिदैन,
तुझपे कल आनेवाला।
जीती बाजी हार चुके हैं,
अब बेहद हैं शर्मिन्दा।
साँसें उनकी चल रही हैं,
कौन कहेगा जिन्दा?
एक रोटी के सिवाय उन्होंने,
और क्या तुमसे माँगा?
वो भी तुम्हें गवारा न हुआ,
उन्हें छोड़ तू क्यों भागा?
सीने में तूफान वो भरकर,
सरेआम तब चलते थे।
बाँध पांव में अंगारा वो,
तूफानों से लड़ते थे।
समाज नहीं बख्शेगा तुम्हें,
हर कोई दुत्कारेगा।
उल्टी गंगा जो भी बहाए,
निश्चित धिक्कारा जाएगा।
रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )