Bhojpuri Kavita Gir ke Uthani

गिर के उठनी | Bhojpuri Kavita Gir ke Uthani

” गिर के उठनी “

( Gir ke uthani )

 

आज उठे के समय हमरा मिलल
देख हमरा के कवनो जल उठल
खिंच देलक गोंड हमर ऐ तरह से
गिर ग‌इनी देख दुनिया हंस पड़ल

का करती हम अभीन उठल रहनी
मंजिल रहे दूर मगर अब ना सुतल रहनी
देख इ हंसी अब हम ठान लेहनी
ले सही सोच फिरु से चल देहनी

झेंप ग‌इनी सारा ताना सड़क के फूल समझ के
बढ़त रहनी सबके बात मन में हम रख के
सोच लेनी इ सड़क से हम लौटेम ओ दिन
जे दिन लोग करी प्रणाम हमरा साहब समझ के

हम पहुंचनी मंजिल सौ बार गिर के
गोंड थाकल, जिव हारल, छाला पडल चल के
मगर आज बहुत खुश रहनी मंजिल साथ लेके
देखत रहे आज दुनिया मुड़ी उठा के

ले फूल माला अउर जयकार उ बोलत रहे
रात दिवाली दिन में होली उ खेलत रहे
देख इ सब हम पिछे के सब भुला ग‌इनी
हम सबके साथ मिल शुरु होली क‌इनी ।

कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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