मुझे संग पाओगे | Hindi Prem Kavita
मुझे संग पाओगे
( Mujhe sang paoge )
जानती हुँ मैं
मुझमें वो पा ना सके तुम
जिसे देखा करते थे ख्वाबों में
कभी लाल साड़ी मे लिपटी फिल्मी सी
या सुनहरी जलपरी जैसे बल खाती लचीली सी..
जानती हुँ मैं
शायद ना पा सके मुझमें
जो सोचा था तुमने
वो शुचिता और पाक रूह
मोहब्बत से लबरेज़ बातों वाली..
जानती हुँ मैं
तुम जीना चाहते हो जिदंगी से ज्यादा
तुम रोशनी के पुंज और मै रात अमावस की
पूनम का चाँद नही बन पाई कभी तुम्हारे लिए…
मै मिलुंगी तुम्हें
हर कहानी-कविता-किस्से के किरदार में
रात के अंधेरे में तुम्हारी धमनियों और शिराओं में बहते रक्त में
तुम्हारी लयबद्ध ऊपर नीचे होती धड़कनों में
आमजन के लिए कुछ कर गुजरने की तुम्हारी चाहत में..
सुनहरी नही हूँ
रोशनी नही हूँ
जिदंगी नही हूँ
ख्वाब भी नही हूँ..
हकीकत की जमीं पर
मुझे पाओगे अपने संग
पैरों के तले की धूल में
माथे से बहते पसीने में
तपती गर्मी में पानी की कुछ बूंदों सी
कड़कती सर्दी में अपनेपन की गर्माहट सी
हर पुण्य-पाप मे,
धर्म-कर्म में
और दुख-सुख में
तुम्हारे कदमों के संग
अदृश्य से मेरे कदम साथ बढते पाओगे
मेरी रूह को अपने संग अपने भीतर समाहित पाओगे..
डाॅ. शालिनी यादव
( प्रोफेसर और द्विभाषी कवयित्री )