हम हुए अस्त | Hum Huye Ast
हम हुए अस्त
( Hum Huye Ast )
” मैं ” की वृत्ति में
” हम” हुए हैं अस्त
बड़ा ही शालीन है
शब्द हम समझो इसे
अपनी जेहन में उतार
वरना तू है बेकार
धरा हुआ है हम
प्रबल दिखा है मै
मैं और हम की
प्रतिस्पर्धा में
पृथ्वी परी है बेसुध
प्रकृति गई है रुठ
मैं की नादानी में
मैं के अहंकार में
टूटा है सारा जहां
बिखरी है मानवता
चराचर है निशाचर
प्रेम है धार कृपाण
पूछता है हम मैं से-
ये नजारे ये मंजर
प्रकट है जो सामने
सामना तू कर पाएगा
शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा( बिहार)
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