हम न झेल पाएंगे | Hum na Jhel Payenge
हम न झेल पाएंगे
( Hum na Jhel Payenge )
हर एक रंग ज़माने के आजमाएंगे I
कही सुनी की धनक हम न झेल पाएंगे II
हज़ार बात हज़ारों जुबान से होगी I
कहाँ हरेक जुबाँ से वफ़ा निभाएंगे II
सुरूर इश्क उन्हें झूठ से हुई जब से I
यकीं न होगा अगर दर्द हम सुनाएंगे II
बने हकीम, मगर तल्ख़ियां पिलाते जो I
कभी उन्ही की दवा ही उन्हें पिलायेंगें II
दिया नज़र तो नज़ारे अता करो मालिक I
छत-ए-मकान से दुनिया न देख पायेंगें II
ग़ुरूब हो गए सूरज गुरूर के कितने I
तिरे गुमान के तारे भी डूब जाएंगे II
दरख़्त सींच अज़ाओं की आज अश्कों से I
यकीन छाँव ग़मों से यहीं दिलाएंगे II
तमाम खार लिए भो गुलाब मुस्काता I
यही हुजूर मुहब्बत हमें सिखाएंगे II
न घोल ज़ह्र सियासी,अदब कहे याशी I
अमन सुकून चलो आज बाँट आयेंगें II
सुमन सिंह ‘याशी’
वास्को डा गामा, ( गोवा )
शब्द
तल्ख़= कड़वाहट
अज़ा= दर्द
ग़ुरूब = सूरज का अस्त होना
तल्ख़= कड़वाहट
धनक= इंद्रधनुष
अता= प्रदान